श्री गंगानाथ जी महाराज के चातुर्मास को लेकर बैठक
रविवार शाम को भैरूनाथजी के अखाडे में शहरवासियों की बैठक श्री श्री 1008 श्री पीर गंगा नाथ जी महाराज के सानिध्य में धर्म प्रेमियों रखी गई। प्रवक्ता अम्बालाल माली ने बताया कि बैठक में पीठाधीश्वर श्री गंगानाथजी के सिरे मंदिर चातुर्मास को लेकर कमेटियां गठित कर जिम्मेदारियां दी गई। इस मौके पंडित प्यारे लाल जी शर्मा ने शुभ मुहूर्त निकाला। बैठक में जालोर के गणमान्य लोग मौजूद थे।
सिरेमन्दिर_जालौर
#जालौर नगर के मध्य स्थित कनकाचल पहाड़ी पर स्थित स्वर्णगिरी दुर्ग के पास ही दक्षिण पश्चिम दिशा में एक और पहाड़ी है, जिसे कन्याचल अथवा कन्यागिरी कहते है जिसकी उंचाई २००० फीट है, उस पर सिरे मंदिर बना हुआ है, सिरे मंदिर नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्द संत योगी जलंधर नाथजी की तपोभूमि है, कहते है की यहाँ स्थित भंवर गुफा में जलंधरनाथ जी ने तपस्या की थी, और तात्कालीन जालौर के राठौड़ शासक रत्न सिंह को अपने योगिक तपोबल से चमत्कार दिखाए थे, और राजा रत्नसिंह को आसमान में विचरण करवाया था जिससे अभिभूत होकर राजा रत्नसिंह ने जलंधरनाथ जी को अपना गुरु माना और जलंधरनाथ जी की गुफा के सामने विक्रम संवत १७०८ अथवा 1651 इसवी में एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था, इस मंदिर को रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो उन्ही के नाम से जाना जाता है ।
#ईस्वी 1803 में तत्कालीन मारवाड़ (जोधपुर) की राजगद्दी पर आसीन भीम सिंह ने अपने सभी संभावित राजगद्दी के उत्तराधिकारियो की हत्या करवाने के प्रयास में अपने छोटे भाई मानसिंह की भी हत्या करने का प्रयास किया तब मान सिंह जी वहा से निकल कर जालोर दुर्ग में ही शरण रहने लगे, तब भीम सिंह जी ने एक विशाल सेना जालोर दुर्ग पर आक्रमण करने और मानसिंह को कैद करने के लिए भेजी किन्तु अनेक वर्षो तक जोधपुर की सेना जालोर दुर्ग का घेरा डाले बैठी रही मगर दुर्ग को भेद नहीं पायी और आखिरकार जब १८०३ इसवी में दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त होने पर मानसिंह जी ने हताश होकर जोधपुर की सेना के सेनापति सिंघवी इन्द्रराज से समझोते की बात चलाई और दिवाली तक दुर्ग खाली करने का निश्चय किया
#विधाता ने जो लिख दिया उसे कोई बदल नही सकता है, एक दिन रूपाजी देवासी कलशाचल पर्वत पर भेड़ बकरियां चरा रहे थे, की अचानक एक साधु आकर उनके दर्शन दिए और रूपाजी देवासी को कहा कि मानसिंह को मेरा एक संदेश देना, मानसिंह को बोलना की इतने दिन रुक गए हो तो तीन दिन ओर रुक जाना जोधपुर की गद्दी तुम्हें मिल जायेगी ।
#यह बात उस दिन तो रूपाजी भेड़ बकरियों को चराते हुए भूल गए, दूसरे दिन जब वापस बकरियां चराने गए, आयस देव नाथजी सुबह सुबह शहर में झोली के लिए जा रहे थे, तब उनको कल वाली बात याद आई, तो देव नाथजी को बोला कि कल मुझे एक साधु मिला थे, उन्होंने बोला है, की मानसिंह को बोलना कि तीन दिन और रुक जाओ तुन्हें जोधपुर की गद्दी मिल जाएगी, में तो जा नही पाऊंगा, आप किले पर जाकर मानसिंह जी को मेरा यह संदेश देना, यही बात देवनाथ ने मानसिंह जी को घुमाकर बोली, देवनाथ ने कहा कि मुझे परम योगी जलंधरनाथ जी ने स्वप्न में आकर कहा है, की यदि वो (मानसिंह) कार्तिक सुदी ६ तक और प्रतिरोध कर ले और दुर्ग खाली नहीं करेंगे तो जोधपुर के शासक बन जायेंगे ।
#मान सिंह जी ने देवनाथ की सलाह मान कर कुछ दिन और प्रतिरोध किया और इस दरमियान कार्तिक सुदी ४ ,19 अक्टूबर १८०३ को जोधपुर के शासक भीम सिंह जी की मृत्यु हो गई और जालौर दुर्ग के बाहर घेरा डालने वाली जोधपुर की सेना के सेनापति इंदरचंद सिंघवी स्वयं मानसिंह जी को धूमधाम से जोधपुर ले गए और उनका राजतिलक किया गया ।
#मानसिंह जी ने जोधपुर का शासक बनने के बाद घरबारी नाथ आयस देवनाथ के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करने के लिए देवनाथ को अपना बनाया और आधा राज्य उन्हें दिया, जोधपुर में महामंदिर और जालोर में कलशाचल पर्वत स्थित नाथ सम्प्रादाय के योगी श्री जलंधरनाथजी की तपोस्थली भंवर गुफा, रत्नेश्वर मंदिर और सिरेमन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था और मानसिंह जी ने जालोर दुर्ग में महल का तथा अनेक अन्य ओर भी अनेक निर्माण कार्य भी करवाए थे ।
#सिरेमंदिर में जाने के लिए वर्तमान में पक्की सड़क बनी हुई है, मंदिर की चढ़ाई के प्रारम्भ में एक विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण किया गया है और उधान का निर्माण किया गया है, तथा मध्य में शिव अवतारी सिद्ध योगी पीरजी श्री शांतिनाथ जी महाराज की आदमकद प्रतिमा बनी हुई है, जालोर वासियों में पीरजी श्री शान्तिनाथ जी के प्रति अगाध श्रद्धा है, श्री शान्तिनाथ जी महाराज के प्रयासों से ही सिरेमंदिर का कायाकल्प हुआ है ।
#सिरेमंदिर के चारो तरफ एक परकोटा बना हुवा है, परकोटे की सभी दिशाओं में द्वार बने हुवे है, अन्दर जाने पर एक कुंड अथवा बावड़ी बनी हुई है, जिसे झालरा कहते है, बावड़ी के जल को चमत्कारी माना जाता है, बावड़ी से आगे जाने पर एक विशाल हाथी की प्रतिमा बनी हुई है जिस पर दोनों तरफ हाथी का मुख निर्मित है और हाथी पर एक पालकी बनी हुई है, जिसमे तरफ नाथ योगी जलंधरनाथजी और दूसरी और मानसिंह जी विराजमान है|
#भंवर गुँफा जिसमे जलंधरनाथ जी ने तपस्या की थी को जिसे शान्तिनाथजी महाराज ने पूरी संगमरमर की बना दी है, गुफा के गर्भ मंदिर के बाहर संगमरमर का मंडप बना हुवा है जिसके चारो तरफ कलात्मक स्तम्भ बने हुवे है जिन पर नाथ योगियों की मुर्तिया बनी हुई है, प्रवेश हेतु तोरणद्वार बना हुवा है, गुम्बद के अन्दर की कारीगिर भी देखने लायक है गुफा के अन्दर चारो तरफ नाथ योगियों से सम्बंधित चित्रकारी की गई है चित्रकारी में सोने का काम किया हुवा है ।
#भंवर गुफा के सामने एक चबूतरा बना हुवा है जिस पर दो तरफ ऊँची चौकिया बनी हुई है जिन पर नाथ योगियों की प्रतिमाए विराजित है जिसमे मुख्यत सुआनाथजी, भवानीनाथजी, भैरूनाथजी, पूरण नाथजी, केशर नाथजी, भोलानाथ जी एवं शान्तिनाथजी की समाधिया है, मंदिर में एक सरोवर भी बना हुवा है, जिसे मानसरोवर कहते है, जिसके बाहर भी कुछ समाधिया बनी हुई है, मंदिर परिसर में मारवाड़ के शासक मानसिंह जी द्वारा निर्मित मर्दाना और जनाना महल भी है, रत्नेश्वर मंदिर के सामने ही एक प्राचीन कूप जिसे चंद्रकूप कहते है और थोडा आगे एक शिलालेख लगा हुवा है जिसके नीचे चरण युगल बने हुवे है ।
#सिरेमंदिर के एक भाग में विशाल भूमि पौधशाला के रूप में भी विकसित की गई है जिसके ऊपर लोहे की जाली लगाईं गई है संभवत कुछ विशेष प्रकार की प्रजातियों के पौधों के विकास हेतु विकसित किया गया है, इसके अलावा मंदिर परिसर में एक अखंड धुणा है जहाँ हिंगलाज माता विराजमान है, और एक अमृत वाचिका भी है, आने वाले यात्रियों और श्रधालुओ के लिए रसोईघर और विश्रामालय बने हुवे है, सिरेमन्दिर पर के वर्तमान पीठाधीश श्री श्री 1008 श्री गंगानाथजी महाराज है ।
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