आज भी है बाकरा गाँव के चैत्रीय नवरात्रि की महक इस राज्य में
बाकरा गाँव जिला जालोर:- आज आपको ऐक बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि बाकरा गाँव के चैत्रीय नवरात्रि की महक कहलाने वाले वो चैत्रीय नवरात्रि अभी के समय सरदरिय नवरात्रि रूप में तमिलनाडु की धरती सेलम में जीवित है
हा आपको आज इस बात का बहुत आश्चर्य भी होगा यह बात जानकार की ये कैसे हो सकता है लेकिन बाकरा गाँव हठीला परिवार व जाने माने गायकार व संगीतकार स्व: श्रीमान भवरलाल की यह बातें व विशेषताये आज गाँव गरबा रूप में जीवित है
हा आपको आज इस बात का बहुत आश्चर्य भी होगा यह बात जानकार की ये कैसे हो सकता है लेकिन बाकरा गाँव हठीला परिवार व जाने माने गायकार व संगीतकार स्व: श्रीमान भवरलाल की यह बातें व विशेषताये आज गाँव गरबा रूप में जीवित है
इसका परिचय देखना है तो आपको तमिलनाडु की धरती सेलम जाना होगा वहाँ के बाकरा गाँव रावणा राजपूत समाज ने यह अनोखी पहल भवरलाल हठीला जी बाते जीवनी की जीवित बचाकर रखा हुआ है
बाकरा गाँव के राजपूतों का वहाँ पर इन गरबो में बहुत बड़ा व बड़े रूप में देखा जाता है कि हर्ष वर्ष की भांति वहाँ गरबा का आयोजन किया जाता है और कई बड़े बड़े कलाकारों का वहाँ संगीत पस्तुति होते है जिसमे हर वर्ष अलग अलग गायकारो को मारवाड़ के प्रसिद्ध बुलाकर लाया जाता है और इसमें भी वही विशेषताओं के साथ जोड़ा जाता है वही हठीला भवरलाल की बातों का विशेष रूप में वही भजनों को दोहराया जाता है जैसे कि पहला भजन "मेंतो गजानंद देव ने सिमरू रे" ऊँचा ऊँचा देवरा रे माड़ी थारा देवरा रे " पावगड टती उत्तिरीया रे " पावली लेने मुतो पावागढ़ गई थी" जैसे जैसे बहुत ही भजनों में वही रूपी के रूप में गजानंद जी का पाधारना ओर माँ चामुण्डा के साथ कोडियाल रूप धारण के रूप मेंआना और कालका के दोनों काले व गोरो भेरूजी का भी वैसे ही बाहर की गेट से आना और दोनों भेरूजी का पहले नृत्य घाट पर चक्र काट कर जाना और फिर माँ कालका के स्टब नाचते नाचते स्टेज पर आना और ओर साथ मे मॉ चामुण्डा के साथ नाचकर मन मोह लेना अपने आप मे आज बात बहुत बडी बात है
अब इसमें ३६कॉम का बहुत बड़ा योगदान रहता है
जय हो चामुण्डा माताजी की
अब इसमें ३६कॉम का बहुत बड़ा योगदान रहता है
जय हो चामुण्डा माताजी की
Bahut badia, mann prasann ho ho gaya.
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