केसे बनाया बाकरा गाँव से अलग बाकरा रॉड और वहाँ का जैन मंदिर

ऐसे  बनाया बाकरा गाँव से अलग बाकरा रॉड बना और वहाँ का जैन मंदिर

अंग्रेजो के शासनकाल में समदड़ी-रानीवाड़ा रेलवे लाइन का कार्य शुरु हुआ उस समय बाकरा गाँव के ठाकुर श्री धोकलसिंहजी के प्रयासो से यहां बाकरा रोड़ स्टेशन बनना तय हुआ, संयोगवष उसी कार्यकाल में त्रिस्तुतिक संघ निर्माता विष्वपुज्य गुरुदेव श्रीमदविजय राजेन्द्रसूरीष्वरजी म.सा. के षिष्य आचार्य श्रीमदविजय धनचन्द्रसूरीष्वरजी म.सा. के षिष्य न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमदविजय तीर्थेन्द्रसूरीष्वरजी म.सा. का आगमन हुआ, तब ठाकुर श्री धोकलसिंहजी एवं सर्वधर्म के लोगों के साथ गुरुदेव का भव्य स्वागत किया और चारों दिशाओं से तकरीबन 30 कि.मी. की दुरी के गाँवों से जैन समाज के लोग भी एकत्रित हुए। गुरुदेव के उपदेश से एकत्रित व्यकित प्रभावित हुए, साधुधर्म क्रिया के कठोर पालक गुरुदेव ने अपने तपोबल से यहां का उज्जवल भविष्य जाना और श्रीसंघ को ज्ञान भंड़ार स्थापना हेतु प्रेरणा दी, श्रीसंघ ने तुरंत निर्णय लेकर भूमि का क्रय किया अल्प समय में ही विधा व्यवस्था एवं ज्ञान भंड़ार के लिये एक लघु धर्मषाला का निर्माण करवाया, पुन: गुरुदेव के आगमन पर गुरुदेव के नाम से ही श्रीतीथेन्द्रसूरी ज्ञान भंड़ार की स्थापना की गयी। उस समय एकत्रित लोगों ने गुरुदेव से पुछा इस संपूर्ण क्षेत्र में चिंटीयां खुब निकल रही है, इसकी क्या वजह है तब गुरुदेव के मुख से निकला था जितनी चिंटीयां आप देख रहे हो, उतनी ही संख्या में यहां पर धर्मप्रेमियों का आवागमन रहेगा, गुरुदेव ने अपने ज्ञानबल से भविष्यवाणी की थी, वो आज साक्षात्कार है।

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