आज के दशहरे से जुड़ी बातें व बाकरा गाँव के चैत्रीय नवरात्रि के वो यादगार पल जो आज भी बस्ते है दिल में
देश भर में आज 30 सितंबर को दशहरा मनाया जा रहा इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर असत्य पर सत्य को विजय दिलाई थी
दशहरा को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है. देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग रावण दहन करेंगे. माना जाता है कि इस दिन रावण के पुतले को जलाने के साथ ही समाज से बुराइयों का भी सफाया हो जाता है. जानें इस पावन पर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें...
भारत के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी दशहरा बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. वहीं मलेशिया में तो इसके लिए ऑफिशियल छुट्टी भी है.
कुल्लू का दशहरा देश भर में लोकप्रिय है. यहां कई दिन पहले ही दशहरा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. यहां भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकलती है, जोकि अलग-अलग जगहों से हो गुजरती है. खास बात ये है कि कुल्लू के दशहरे में रावण का पुतला जलाया नहीं जाता.
मैसूर का दशहरा अपनी अनोखी छटा और शाही अंदाज के लिए दुनियाभर में मशहूर है. करीब 600 सालों से मैसूर में दशहरा मनाया जा रहा है. इसकी शुरुआत होती है चामुंडी पहाड़ियों में स्थित चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ.
कहा जाता है कि पहली बार मैसूर में 17वीं सदी में दशहरा मनाया हया था.
- दशहरा का शब्द संस्कृत निकला है, जिसका मतलब है 'सूरज नहीं उगेगा'.
- दशहरा को विजयदशमी भी कहा जाता है. दशमी दुर्गा पूजा का आखिरी दिन होता है.
वो बाकरा गाँव चैत्रीय नवरात्रि की यादें
- हमारे बाकरा गाँव मे भी नवरात्री आयोजन बहुत बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था आज से 15 वर्ष पूर्व में जब चैत्रीय नवरात्री मनाई जाती थी तब इस दिन बहुत बड़ी सँख्या में गाँव के सभी किसान भाई अपना अपना ट्रैक्टर लेकर माँ चामुण्डा माताजी के मन्दिर हाजिर होते थे फिर सभी देवी देवताओं के रूप वेशभूषा पहन कर अपना अपना किरदारों के साथ टेक्टरों में रवाना होकर गाजे बाजे के साथ नाचते नाचते पूरे गाँव जलूस के रूप में मोह लेते थे
जब आज का दिन याद आता है तब विदेशी में बैठें हमारे गाँव के प्रवासी इस दिनों सभी अपने अपने व्यवसाय छोड़कर आज बाकरा गाँव मे होते थे
ये दिन आज भी दिल मे चुभते है कि वो बाकरा गाँव के गरबा जो पूरे जालौर ही नही बल्कि सम्पूर्ण राजस्थान एकलौते गाँव मे नवरात्रि के रूप में सुप्रसिद्ध थे ये पूरा कार्यक्रम के मुख्य रूप किरदार बाकरा गाँव के संगीतकार स्व: भंवरलाल हठीला करते थे ओर वो न्रत्य जो महाकाली का रूप निभाने वाले देवाशी गेपाराम ओर माँ चामुण्डा का किरदार निभाने वाले चेलसिंह रा राजपूत का वो न्रत्य जो आज भी ह्रदय की गहराइयों से नही निकलता है
जब आज का दिन याद आता है तब विदेशी में बैठें हमारे गाँव के प्रवासी इस दिनों सभी अपने अपने व्यवसाय छोड़कर आज बाकरा गाँव मे होते थे
ये दिन आज भी दिल मे चुभते है कि वो बाकरा गाँव के गरबा जो पूरे जालौर ही नही बल्कि सम्पूर्ण राजस्थान एकलौते गाँव मे नवरात्रि के रूप में सुप्रसिद्ध थे ये पूरा कार्यक्रम के मुख्य रूप किरदार बाकरा गाँव के संगीतकार स्व: भंवरलाल हठीला करते थे ओर वो न्रत्य जो महाकाली का रूप निभाने वाले देवाशी गेपाराम ओर माँ चामुण्डा का किरदार निभाने वाले चेलसिंह रा राजपूत का वो न्रत्य जो आज भी ह्रदय की गहराइयों से नही निकलता है
बाकरा गाँव के मेहन्दरसिंह रा .राजपुत बताते है की में उस समय राजा महाराजा के सामने कुछ रंगारंग हो जाये तब में उन राजा महाराजों का मन मोहन खुश करने के रूप में उनके सामने नुर्टिय नाटिका के रूप में मंच पर आता था और बाकरा गाँव के संगीतकार श्री मान भंवरलाल हठिला जी मेरा ऐक फेमस गीत चौसठ जोगनी पस्तुति किया करते थे
बाकरा गाँव के इस पेज में आज हजारो की संख्या में इनबॉक्स मैसेज मिल रहे है कि बाकरा गाँव मैं एक बार फिर से ये चैत्रीय नवरात्री का आयोजन हो
उन सभी को हम बस इतना ही केहना चाहेंगे कि ये बात का फैसला आने वाले वर्षों में भामाशाह का रुख देखते हुऐ विसार विमर्स किया जाहेगा
जय चामुण्डा माताजी की
उन सभी को हम बस इतना ही केहना चाहेंगे कि ये बात का फैसला आने वाले वर्षों में भामाशाह का रुख देखते हुऐ विसार विमर्स किया जाहेगा
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